
बिहार में इस बेरिया चुनावी मेला में, नेताजी लोग के नजर अब ‘नदी किनारे वाला वोट बैंक’ पर टिक गइल बा। जी हां, बात हो रहल बा मल्लाह यानी निशाद समाज के — जिनका बिना अब ना गंगा पार होती, ना कुर्सी।
2023 के जातीय सर्वे के हिसाब से, ई समुदाय कुल आबादी के करीब 9.6% बा, जिनमें मल्लाह अकेले 2.6% हउअन। अब एतना वोट के मोल भला कौन छोड़ेगा?
“जिनके नाव, ओहके हाथ पतवार!”
मुजफ्फरपुर, वैशाली, दरभंगा, खगड़िया से लेके पूर्वी-पश्चिमी चंपारण तक, मल्लाह समाज बीस से ज्यादा सीटन पर चुनावी नैया डोलावत बा।
अब नेता लोग के हालत ई बा कि सब कोई कह रहल बा — “मल्लाह जी, हमरा नैया पार लगाइ दीं, बाकी बाद में देखी।”
सहनी के सियासी नाव – कब डूबे, कब तरे, कोई ना जाने!
मुकेश सहनी, उर्फ “सन ऑफ मल्लाह”, एगो टॉपिकल उदाहरण हउअन। कभी एनडीए में, फिर महागठबंधन में, फेर भाजपा से नाराज़…
राजनीति में उ ऐसे तरे-तरे कर रहल बानीं जइसे मछरी जाल में ना फँसे। महागठबंधन अब उहे कार्ड खेल रहल बा — “डिप्टी सीएम बनाइब, बस वोटवा दे दीं” बाकी जनता बोले — “पहिले बताईं, पिछला बेर के वादा का भइल?”
बीजेपी भी ना पीछे — नाव के इंजिन में मोदी का तेल!
बीजेपी के तरफ से राज भूषण चौधरी, जे खुद मल्लाह नेता हउअन, पूरा जोश में प्रचार में उतर गइल बानीं। पार्टी का मकसद साफ बा — “सहनी के चमक कम करा दीं, बाकी वोट हमरा मिल जाई।” मोदी सरकार में मंत्री बनाकर भी बीजेपी ई मेसेज दे रहल बा कि, “हम मल्लाह के साथ बानीं।”

कौन किधर तरेगा – ई देखे वाला खेल!
अबकी के बिहार चुनाव, खासकर 6 नवंबर के जोन वोटिंग बा, उ मल्लाह समुदाय के लिए एगो “लिटमस टेस्ट” ह।
तेजस्वी के अपील कि “बदलाव के लहर चलल बा” बनाम सहनी के “नैया राजनैतिक किनारा खोजत बा” — देखल जाई कि जनता के पतवार किस ओर मुड़ेला।
“नेता लोग तरे, जनता डूबे!”
हर चुनाव में मल्लाह के वोट तब याद आवेला जब नेता के कुर्सी डोलावेला। बाकी जब विकास के बात होखेला — त फिर “नाव घाट पर छोड़” लोग आगे बढ़ जाला। काश, ई बार वादा ना, कुछ काम भी किनारा तक पहुँचे।
मल्लाह समाज अब ‘किंगमेकर’ बन चुका बा। सवाल ई नइखे कि “कौन जीतेगा?”
असल सवाल बा — “कौन मल्लाह के दिल जीतेगा?”
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